आपका हमारे हिंदी टेक्नोलॉजी ब्लॉग में स्वागत है। आज हम इस आर्टिकल में Bluetooth क्या है और यह कैसे काम करता है? इससे जुड़ी हर जानकारी देंगे। ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी मतलब बिना किसी तार के डाटा ट्रांसफर करने की बेहतरीन सुविधा।
आज से कई वर्षों पहले से हम सब ब्लूटूथ का उपयोग कर ही रहे हैं। शुरू में यह Keypad Phones में काफी ज्यादा उपयोग किया जाता था। तब स्मार्टफोन मार्केट में नहीं आए थे। ब्लूटूथ के जरिए हम एक फोन से दूसरे फोन में Mp4 Videos, Mp3 File, Images जैसी चीजों को भेजा और प्राप्त करते थे।
परंतु वर्तमान में अब ब्लूटूथ का उपयोग मोबाइल फोन से लेकर ऑडियो-डिवाइस जैसे कि Headphones में किया जाने लगा है। हालांकि पहले के समय के मुकाबले Bluetooth Technology ज़्यादा विकसित हुई है। आज हम ब्लूटूथ की तेज स्पीड और फीचर्स का पता Bluetooth Version से लगा पाते हैं।
वर्तमान में ब्लूटूथ 5.0 वर्जन चल रहा है। जो मोबाइल फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर, वायरलेस हेडफोंस में सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जा रहा है। आगे हम bluetooth के बारे में इसी तरह की रोचक जानकारी इस आर्टिकल में जानेंगे।
Bluetooth भी Wireless Technology पर आधारित है। तो चलिए दोस्तों अब बिना समय गवाएं ब्लूटूथ क्या है और कैसे काम करता है? विषय पर पूरी जानकारी प्राप्त करते हैं।
दोस्तों आधा अधूरा ज्ञान हमेशा खतरनाक होता है। इसलिए हर विषय को पूर्ण जानना और समझना चाहिए। इसलिए हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें। ताकि आप पूर्ण ज्ञान ब्लूटूथ के बारे में प्राप्त कर सकें।
ब्लूटूथ क्या है (What is Bluetooth in Hindi)
Bluetooth एक ऐसी तकनीक है। जिसके जरिए हम एक कम दूरी तक किसी भी मोबाइल या कंप्यूटर डिवाइस में डाटा ट्रांसफर करते हैं। यह Wireless Technology के PAN (Personal Area Network) पर आधारित है। यानी कि हम एक नेटवर्क बनाते हैं। जिसमें हम 10 मीटर की रेंज में किसी भी Bluetooth Device के बीच में डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं।
कई वर्षों से Bluetooth technology में 2.4GHz फ्रीक्वेंसी का उपयोग हो रहा है। वायरलेस डाटा ट्रांसफर के लिए फ्रीक्वेंसी बैंड की जरूरत पड़ती है। इसलिए शुरू से ही जो भी ब्लूटूथ डिवाइस बनी है। उनमें 2.4GHz फ्रीक्वेंसी बैंड को इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि अब 5GHz बैंड फ्रीक्वेंसी का उपयोग डिवाइस में किया जा रहा है। क्यूँकि 2.4GHz के मुकाबले 5GHz में Data Packet Loss होने की कम संभावना है।
कई बड़ी टेक कंपनियों के द्वारा Bluetooth Technology का उपयोग अपने प्रोडक्ट मैन्युफैक्चरिंग में किया गया है। चाहे वह Computer, Laptop, Headphone हो। इसलिए इस तकनीक को ओर भी विकसित किया गया है। जिसमें bluetooth के version को अपडेट किया जाता आ रहा है। इनमें एक से अधिक डिवाइस के जुड़ने पर भी डाटा लॉस नहीं होता।
Bluetooth का इतिहास (History of Bluetooth)
ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी सिर्फ एक ही कंपनी की देन नहीं है। आज इस टेक्नोलॉजी को बेहतर बनाने में बहुत सी कंपनियों की भागीदारी है। हालांकि उस समय में सर्वप्रथम Ericsson कंपनी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर Dr. Jaap Haartsen ने bluetooth Wireless Technology को बनाया। आगे इस टेक्नॉलजी को कैसे विकसित किया गया। आइए सूचीबद्ध तरीके से जानते हैं।
- वर्ष 1994 में Ericsson कंपनी के द्वारा ऐसी वायरलेस टेक्नोलॉजी बनाने के बारे में सोचा। जो दो डिवाइस को आपस में जोड़ सकें।
- वर्ष 1995 में कंपनी के इंजीनियर ने तकनीक पर काम शुरू किया।
- वर्ष 1997 में Intel कंपनी भी Ericsson के साथ इस मिशन में शामिल हुई।
- वर्ष 1998 में वायरलेस टेक्नोलॉजी में खास रुचि रखने वाली कंपनीयों का समूह बना। जिसमें Ericsson, Intel, IBM, Nokia, और Toshiba कंपनीज इस समूह में शामिल हुई। इस समूह का नाम SIG (Special Interest Group) रखा गया।
- जुलाई 1999 में Bluetooth Specification लॉन्च किया गया। जिसमें यह जानकारी साझा की गई कि आगे यह तकनीक कैसे विकसित की जाएगी और यह कैसे बनाई गई है।
- इसी वर्ष कई Promotor Company: 3Com, Lucent, Microsoft, Motorola को SIG में शामिल किया गया।
- वर्ष 2000 में Bluetooth Specification 1.0 (B) लॉन्च किया गया। इस दौरान प्रमोटर ग्रुप की संख्या 2000+ हो चुकी थी।
- वर्ष 2001 में पहला Bluetooth Mobile Phone लांच किया गया। जो Ericsson T36 था।
ब्लूटूथ का नाम कैसे रखा गया?
ब्लूटूथ का नाम 10 वीं सदी के राजा Harald Gormsson के नाम पर रखा गया है। इन्होंने नॉर्वे और डेनमार्क देशों को जोड़ने का काम किया था। इन देशों के समूह को आज Scandinavia कहा जाता है। जिस प्रकार King Harald दो देशों को जोड़ना चाहते थे। ठीक उसी प्रकार Bluetooth भी दो डिवाइस को साथ जोड़ने का काम करता है। King Harald का एक दांत नीला यानि मृत दांत प्रतीत होता था।
ब्लूटूथ के नाम की उत्पत्ति Intel कंपनी के कार्यकर्ता Jim Kadach के द्वारा हुई थी। उन्होंने यह नाम King Harald के बारे में पुस्तक पढ़कर दिमाग में आया था। जिसे उन्होंने मार्केटिंग ग्रुप के सामने रखा और बाद में उस समय की Wireless Technology का नाम “Bluetooth” रखा गया।
Bluetooth Symbol कैसे डिज़ाइन किया गया?
जब ब्लूटूथ का नाम पड़ा तो Scandinavia को एक साथ जोड़ने वाले राजा को King Blåtand Harald के नाम से जाना जाने लगा। Blåtand डेनिश भाषा का शब्द है। जिसका इंग्लिश में अर्थ ‘Bluetooth’ है। इसलिए ब्लूटूथ का जो Syambol (चिहन) है।
वह राजा के नाम के अक्षर “H=Harald” और “B=Blåtand” से ही बना है। 10 वीं सदी में नॉर्वे और डेनमार्क में Periodic language बोली जाती थी। इस भाषा में ‘H’ और ‘B’ शब्दों को ब्लूटूथ के Symbol से प्रदर्शित किया जाता था। जिसकी बदौलत Bluetooth को डिजाइन किया गया।
Bluetooth कैसे काम करता है?
आसान भाषा में समझे ब्लूटूथ से डाटा ट्रांसफर करने में 720Kbps Data Rate, 2.4GHz Frequency Signal, 79 Frequency Channel जैसे Specifications को ध्यान में रखें। जिसे हम ब्लूटूथ के काम करने की प्रक्रिया को आसानी से समझ सकेंगे।
ब्लूटूथ के द्वारा किसी डिवाइस में डेटा भेजना और प्राप्त करना होता है। तो हर ब्लूटूथ डिवाइस (मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर) में माइक्रोचिप लगी होती है। जो रेडियो तरंगों और 2.4GHz फ्रीक्वेंसी को भेजती और वापस प्राप्त करती है।साथ ही फ्रीक्वेंसी को यूनिक रखने के लिए 79 Frequency Channel का उपयोग किया जाता है।
इन रेडियो तरंगों की Data Rate गति 720kbps होती है। सभी ब्लूटूथ डिवाइस की फ्रीक्वेंसी 2.4GHz होती है। इसलिए जब किसी दूसरी डिवाइस को हम Data भेजते हैं। तो वह 2.4GHz फ्रीक्वेंसी की खोज करती है। जब दोनों की Frequency एक साथ मिल जाती है तो हमारी डिवाइस ‘Paired’ हो जाती है।
अब यहां पर एक प्रश्न उठता है। अगर 2.4GHz फ्रीक्वेंसी सभी ब्लूटूथ डिवाइस को कनेक्ट करने हेतु उपयोग होती है। तो ऐसे में हमारी डिवाइस किसी भी डिवाइस से Paired अथार्त कनेक्ट हो सकती है। तो Bluetooth Technology में 2.4GHz फ्रीक्वेंसी के साथ 79 Frequency Channel का उपयोग किया गया है।
इन 79 Frequency Channel में से Data send सिर्फ़ दो चैनल से होता है। इसीलिए इन्ही दो चैनलो पर आने वाली ख़ास Radio waves ही आपस में संपर्क स्थापित कर आती है और बाकी रद्द हो जाती है। इससे किसी दूसरे डिवाइस के संपर्क स्थापित करने में कोई समस्या नहीं आती। क्यूँकि उनके द्वारा अलग अलग Frequency Channel का इस्तेमाल किया जाता है।
Ad hoc Network क्या है?
Ad hoc एक ऐसा वायरलेस नेटवर्क है। जिसमें दो डिवाइस के बीच सीधा संपर्क स्थापित किया जाता है। इन दो डिवाइस के बीच में किसी अन्य डिवाइस की जरूरत संपर्क स्थापित करने में नहीं होती। उदाहरण: Adhoc Network को Bluetooth उपयोग करता है। जिसमें दो डिवाइस के बीच सीधा संपर्क स्थापित होता है।
ब्लूटूथ नेटवर्क में Piconet और Scatternet क्या है?
जैसा कि अभी आपने Adhoc Network के बारे में जाना। इसी का उपयोग ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी में संपर्क स्थापित करने में होता है। कैसे? आइए जानते हैं।
Piconet-
Adhoc Network में दो डिवाइस के बीच सीधा संपर्क स्थापित किया जाता है। वही जब इसी नेटवर्क का उपयोग हम bluetooth Technology के जरिए करते हैं। तो वह ‘Piconet’ कहलाता है।
Piconet में डाटा ट्रांसफर Master Device (M) और Slave Device (S) के बीच होता है। यानी कि जो डिवाइस दूसरी डिवाइस से कनेक्शन स्थापित करती है। वह Master Device (M) और जो डिवाइस कनेक्ट होती है वह Slave Device (S) बन जाती है।
Piconet में एक 1 Master Device और 7 Slave Device होती है। Slave Device आपस में संपर्क स्थापित नहीं कर सकती। यह सब इसलिए सिर्फ मास्टर डिवाइस पर निर्भर होती है।
जब भी हम अपने मोबाइल से किसी दूसरे डिवाइस के साथ कनेक्शन जोड़ते हैं उस समय हमारा मोबाइल Master Device होता है। वही दूसरा Slave Device ठीक इसी प्रकार दोनों तरफ से स्थिति बदलती रहती है।
Scatternet
piconet में एक Master Device (M) और बाकी 7 Slave Device (S) होते हैं और Scatternet में दो या दो से अधिक पिकॉनेट साथ में होते हैं। वह नेटवर्क ‘Scatternet’ कहलाता है। जब दो पिकॉनेट साथ में होते हैं तो उनके बीच में एक मास्टर डिवाइस होता है। जो Bridge Slave का काम करता है।
यानी कि वह मास्टर डिवाइस दोनों Piconets में डाटा ट्रांसफर कर सकती है। Scatternet में जो पिकॉनेट होते हैं। उनका एक ही master-Device होता है। जो किसी भी Slave Device को Piconets में डाटा ट्रांसफर करने की अनुमति देता है।
Bluetooth Architecture क्या है? (Bluetooth Architecture in Hindi)
ब्लूटूथ आर्किटेक्चर का मतलब यानी कि ब्लूटूथ के काम करने की प्रक्रिया कैसी है। इसमें कौन से Layers Functions होते हैं। जैसी सभी चीजें ब्लूटूथ आर्किटेक्चर में आती हैं।
ब्लूटूथ आर्किटेक्चर में मुख्यतः दो भाग होते हैं- (1) हार्डवेयर रेडियो सिस्टम जिसे ‘Lower Layer Stack’ कहा जाता है। (2) सॉफ्टवेयर रेडियो सिस्टम जिसे ‘Upper Layer Stack’ कहा जाता है। यह दोनों लेयर मिलकर Bluetooth Architecture को वर्णित करती हैं।
- Lower Layer Stack में Radio (RF), Baseband Link Controller, Link Manager Protocol (LMP), Host Control Interface (HCI) जैसे हार्डवेयर रेडियो सिस्टम शामिल होते है।
- Upper Layer Stack में Bluetooth Protocol Profile शामिल होती है। यह ऊपरी भाग सॉफ्टवेयर सिस्टम होता है। जिसमें Telephony Control Protocol (TCP), Radio Frequency Communications (RFComm), Wireless Application Protocol (WAP), Object Exchange Protocol (OBEX) शामिल होते है।
Bluetooth protocol stack architecture :
तो चलिए आप ब्लूटूथ प्रोटोकोल स्टैक आर्किटेक्चर में शामिल Layers Functions के बारे में जानते हैं। इन फंक्शन का क्या काम होता है। आप चित्र की सहायता से आसानी से समझ सकते हैं।
1. Radio Interface
इसमें Frequency Handling/Modulation यानी की फ्रीक्वेंसी में उतार-चढ़ाव और उसे मैनेज करना और Air Interface यानी की 2.4GHz फ्रीक्वेंसी वाले डिवाइस से कनेक्शन और 79 Frequency Channel में से किन दो चैनल से डाटा ट्रांसफर होगा जैसी चीजें Radio Interface में आती है।
2. Baseband Controller
Baseband में डिवाइस की Availability को देखा जाता है। जब ब्लूटूथ किसी डिवाइस को खोजता है। तो कितनी डिवाइस उस समय Available होती है। साथ ही वह डिवाइस कितने समय तक डिवाइस से कनेक्शन बनाई रखेगी। यह Baseband Controller के जरिए मैनेज होता है।
3. Link Manager Protocol (LMP)
यह Host Control Interface (HCI) होता है। यानी कि दो ब्लूटूथ डिवाइस के बीच कितनी देर तक Host अपनी डाटा ट्रांसफर प्रक्रिया को जारी रखते हैं। उसके समय को Link Manager Protocol (LMP) संभालता है। साथ ही इसमें डिवाइस के Encryption, Authentication प्रक्रिया भी शामिल होती है।
4. logic link Protocol And adoption Protocol (L2CAP)
l2CAP lower Layer Stack और Upper Layer Stack को जोड़ता है। साथ ही L2CAP डिवाइस को वायरलेस कनेक्शन सुविधा प्रदान करेगा।
(अब हम Upper layer stack यानी कि सॉफ्टवेयर रेडियो सिस्टम के बारे में जानेंगे। जिसमें Bluetooth Protocol Profile होती हैं। आइए Protocol Stack Architecture को समझते हैं।)
1. Service Discovery Protocol (SDP)
इसे प्रोटोकॉल प्रोफाइल का काम ब्लूटूथ डिवाइस कनेक्शन को खोजना है। Call, Internet, File Transfer protocol को प्रोवाइड करना भी SDP में आता है।
2. Radio Frequency Communications (RFComm)
इसमें वायरलेस File data transfer, voice transfer, internet का उपयोग करना RFComm मैनेज करता है।
3. Wireless Application Protocol (WAP)
यह प्रोटोकॉल internet Based Applications को मोबाइल फ़ोन के साथ कनेक्ट करता है।
4. Object Exchange (OBEX)
यह एक फाइल ट्रांसफर प्रोटोकोल है। जिन डिवाइस में Bluetooth Technology होती है। यह उन के बीच में फाइल ट्रांसफर संपर्क स्थापित करता है।
5. Telephony Control Protocol (TCP)
जैसा कि नाम से ही पता लगता है। यह Bluetooth telephones Calls को point-to-point ब्लूटूथ लिंक भेजता है। ब्लूटूथ डिवाइस से कॉल करना TCP Protocol मैनेज करता है।
Bluetooth Protocol Profiles क्या होते है?
आसान भाषा में Protocol Stack Architecture को काम करने के लिए ‘Set Of Instructions’ यानी की निर्देश चाहिए होते हैं। यह निर्देश Protocol Stack को Bluetooth profiles के द्वारा दिए जाते हैं।
जैसे कि हमने किसी Bluetooth Device को खरीदा तो उसमें हमें यह देखना होगा कि उसमें कौन सी bluetooth Protocol Profiles मौजूद हैं। इन प्रोफाइल्स का उपयोग अलग-अलग डिवाइस में कई तरीकों से किया जाता है।
जैसे कि HSP एक Headset Bluetooth Profiles है। इसका काम हमारे मोबाइल ब्लूटूथ के साथ Headset Device के बीच सही से संपर्क स्थापित करना है। Protocol Stack में उपयोग होने वाली ब्लूटूथ प्रोफाइल्स की संख्या बहुत ज्यादा है। आइए कुछ ब्लूटूथ प्रोफाइल्स के नाम जानते हैं।
- Attribute Profile (ATT)
- basic imaging profile (BIP)
- Basic printing profile (BPP)
- ब्लूटूथ वर्जन क्या हैcommon ISDN Access Profile (CIP)
- Device iD Profile (DIP)
- Dial-Up Networking Profile (DUN)
- Fax Profile (FAX)
- Generic Access Profile (GAP)
- Radio Frequency Communications (RFComm)
- service discovery Protocol (SDP)
- wireless applications protocol (WAP)
- object Exchange (OBEX)
- telephony Control Protocol (TCP)
- Audio/Video Remote Control Profile (AVRCD)
- General Audio/Video Distribution Profile (GAVDP)
- personal Area network (PAN)
- headset profile (HSP)
- Hands-Free Profile (HFP)
- File Transfer Protocol (FTP)
- telephony Control Protocol (TCP)
ब्लूटूथ वर्जन क्या है?
ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी को आज लगभग हर डिवाइस में उपयोग किया जाता है। ऐसे में इसमें समय के साथ कई बदलाव हुए हैं। हर Latest Device के साथ ही इसे Compatible बनाया गया है। Bluetooth Version इसीलिए लॉन्च किए जाते हैं। ताकि हर डिवाइस के साथ बेहतर संपर्क स्थापित कर सके।
जैसे कि कुछ वर्षों पहले ऐसी डिवाइस नहीं बनी थी जो Wireless Voice Transfer कर सके। परंतु धीरे-धीरे कर ब्लूटूथ वर्जन लाए गए और वर्तमान में हम जिन Version का उपयोग अपने डिवाइस में कर रहे हैं। वह ब्लूटूथ 5.0 वर्जन है।
जैसे कि हमने आपको बताया था कि SIG (Special Interest Group) जिसमें Ericsson, IBM, Intel, Nokia, Toshiba कंपनी शामिल थी। इन्होंने Wireless Technology में कुछ नई तकनीक के बारे में खोजने का सोचा। तब ब्लूटूथ की खोज हुई।
परंतु आज यह SIG Group में 3000+ कंपनियां शामिल हैं। जिनको ब्लूटूथ वर्जन बनाने में और इसे हर डिवाइस के साथ Compatible बनाने की छूट है। इसलिए Bluetooth Version इतनी जल्दी लॉन्च हो रहे हैं।
चलिए अब उन Bluetooth Version के बारे में जानते हैं। जो वर्ष 1999 से लेकर अब तक लॉन्च हो चुके हैं। साथ ही उनकी खासियत भी जानेंगे।
- Bluetooth v1.0 and v1.0B (Bluetooth Hardware Device address)
- bluetooth v1.1 (IEEE Standard 802.15.1-2002)
- bluetooth v1.2 (Faster Connection And Discovery)
- bluetooth v2.0+EDR (Improve Data Rate 2.1MBPs)
- bluetooth V2.1 (Secure Simple Pairing Without Pin)
- bluetooth v3.0 (High speed Data Transfer)
- bluetooth V4.0 (Low Energy Consumption, Strong Power Management)
- bluetooth v4.1 (Better Connection With LTE Frequencies)
- bluetooth V4.2 (Support Beacons, IPv6, Built Of Internet Of Things)
- bluetooth v5.0 (Increased range 50-200m, connect with two devices)
- bluetooth v5.1 (Include More Antenna And Great Tracking Accuracy)
- bluetooth V5.2 (Low Energy Power Control With Peer Device
- bluetooth V5.3 (Enhanced Security, Stability, Efficiency and Datarate)
Bluetooth Technology के Applications क्या है?
अब हम जानेंगे कि ब्लूटूथ का उपयोग हम किस उद्देश्य की पूर्ति हेतु कर सकते हैं। आज इस टेक्नोलॉजी का उपयोग कैसे किया जा रहा है।
- ब्लूटूथ से हम अपने कंप्यूटर के इनपुट और आउटपुट डिवाइस से वायरलेस संपर्क स्थापित कर सकते हैं। उदाहरण माउस, कीबोर्ड,प्रिंटर इत्यादि।
- ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का उपयोग कर हम Videos, Audio, Images जैसी फाइलों को बिना इंटरनेट के एक से दूसरे मोबाइल में ट्रांसफर कर सकते हैं।
- Gaming Headset या Playstation गेमिंग के लिए ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हैं।
- कार और अपने मोबाइल डिवाइस को Bluetooth Technology की मदद से कनेक्ट कर म्यूजिक सुन सकते हैं।
- Earphone, Headphone, TWS Device में बेहतर Latency के लिए ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का सबसे ज्यादा उपयोग किया जा रहा है।
Bluetooth Pairing कैसे होती है?
जब हम किसी फाइल को ब्लूटूथ के जरिए दूसरे मोबाइल में Send करते हैं। तो यह आसानी से दोनों डिवाइस Paired हो जाती हैं। परंतु इसके पीछे भी प्रक्रिया काम करती है। आखिर कैसे ब्लूटूथ पेयरिंग काम करती है? इसके चार चरण होते हैं। जिसमें ब्लूटूथ ‘On’ करने से लेकर उसे ‘connect’ कर होने तक की पूरी प्रक्रिया शामिल है।
Discovery
जब ब्लूटूथ डिवाइस को ऑन किया जाता है। तो वह 2.4 GHz फ्रीक्वेंसी बैंड वाली दूसरी डिवाइस को Discover करती है। उसी समय दूसरी डिवाइस भी उसी जैसी फ्रिकवेंसी बैंड को खोज रही होती है।
Search
दोनों ब्लूटूथ डिवाइस की रेंज एक समान होने पर दोनों डिवाइस एक दूसरे से 2.4GHz फ्रीक्वेंसी पर कनेक्ट होती है। साथ ही ब्लूटूथ कनेक्शन की सर्च को जांचने के लिए दोबारा सिग्नल भेज सर्च की inquiry भी करते हैं।
Pairing
जब दोनों डिवाइस की दूरी और 2.4GHz फ्रिकवेंसी बैंड मिलते हैं। तब pairing process शुरू होता है। pairing का मतलब यानी कि दोनों डिवाइस एक दूसरे से पहली बार कनेक्शन स्थापित करना। इसलिए जब pairing शुरू होती है तब दूसरे डिवाइस को verify करने लिये Passkey भेजा जाता है। जिसे Allow करना होता है।
Connection
pairing पूरी होने पर दोनों डिवाइस के बीच एक कनेक्शन स्थापित हो जाता है। जिसमें अगर वह डिवाइस Disconnect या ब्लूटूथ रेंज से दूर भी चली जाए। तो Automatically कनेक्शन जुड़ जाता है। यानी डिवाइस paired हो जाती है।
Bluetooth और WiFi के बीच अंतर :
आइए सूचीबद्ध तरीके से ब्लूटूथ और वाईफाई के बीच क्या अंतर है जानते हैं।
संख्या | Bluetooth (ब्लूटूथ) | WiFi (वाइफ़ाई) |
1. | ब्लूटूथ एक Low Power Cunsumption टेक्नॉलजी है। | वाइफ़ाई टेक्नॉलजी में डेटा शेयरिंग के दौरान High Power Cunsumption होती है। |
2. | ब्लूटूथ की फ्रिकवेंसी बैंड 2.400GHz से 2.483GHz होती है। | वाइफ़ाई की फ्रिकवेंसी बैंड 2.4GHz से 5GHz तक होती है। |
3. | ब्लूटूथ में ज़्यादा डिवाइस नहीं जोड़ सकते है | वाइफ़ाई में ज़्यादा डिवाइस को जोड़ा जा सकता है। |
4. | ब्लूटूथ की रेडियो सिग्नल रेंज 10m तक होती है। | वाइफ़ाई की रेडीयो सिग्नल 100m तक होती है। |
5. | ब्लूटूथ टेक्नॉलजी की डाटा प्रॉसेसिंग की गति 2.1MBPs तक होती है। | वाइफ़ाई की डाटा प्रॉसेसिंग की गति 600MBPs से ज़्यादा होती है। |
6. | ब्लूटूथ बिना इंटर्नेट के डेटा ट्रांसफ़र करता है। | वाइफ़ाई को डेटा शेयरिंग करने के लिए इंटरनेट ज़रूरी है। |
Bluetooth Technology का भविष्य क्या है?
आज से कुछ वर्षों पहले की बात करें तो ब्लूटूथ कुछ ही Applications तक सीमित था। परंतु जैसे-जैसे आज कई बड़ी कंपनियां चाहे वह गेमिंग प्रोडक्ट बनाने या कोई भी प्रोडक्ट जो wireless technology पर आधारित हो। ब्लूटूथ का उपयोग ऐसे प्रोडक्ट में ज्यादा है।
Latest bluetooth version आने से High-speed और large range जैसे बदलाव ब्लूटूथ में हुए हैं। जिससे भविष्य में लोगों की आवश्यकता अनुसार कई अलग-अलग उद्देश्य की पूर्ति के लिए ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा सकता है।
हर नया Bluetooth version अपने अलग फीचर के साथ आता है। नई डिवाइस में उपयोग होता है। इससे यही सिद्ध है कि कंपनीज ब्लूटूथ को भविष्य में उपयोग के लिए विकसित कर रही है। इस टेक्नोलॉजी का आगे बहुत भविष्य है।
Bluetooth low energy (BLE) क्या है?
Bluetooth Low Energy (BLE) ब्लूटूथ का Subversion है। जिस प्रकार ब्लूटूथ आर्किटेक्चर कार्य करता है।ठीक उसी प्रकार BLE भी उसी आर्किटेक्चर पर आधारित है। Bluetooth Low Energy (BLE) का उपयोग Low-Powered Device में किया जाता है। जैसे कि internet-of-things डिवाइस में इसका उपयोग कम बिजली खपत हेतु किया गया है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) में BLE का उपयोग Mobile Phones, Gaming, PC, Watches, Sports and Fitness, Healthcare करने का उद्देश्य है।
Bluetooth के फ़ायदे (Bluetooth Advantage in hindi)
अब हम ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी के फायदे के बारे में जानेंगे।
- ब्लूटूथ डिवाइस बाकी दूसरी डिवाइस के मुकाबले सस्ती है।
- ब्लूटूथ डिवाइस कम पावर उपयोग करती है। जिसे ज्यादा समय तक हम स्मार्ट्फ़ोन यूज कर पाते हैं।
- ब्लूटूथ से 2.4 GHz radio-frequency निकलती है और इस फ्रीक्वेंसी का उपयोग सभी वायरस टेक्नोलॉजी में होता है।
- ब्लूटूथ से बिना इंटरनेट कनेक्शन के डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं।
- ब्लूटूथ से वॉइस और डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं चाहे वह किसी भी प्रकार का डाटा हो। (उधाहरण: Audio/video, PDF, Images इत्यादि।
Bluetooth के नुक़सान (Bluetooth Disadvantage in Hindi)
जिस टेक्नोलॉजी के फायदे होते हैं। उसमें भी कुछ खामियां होती है। यह क्या है? आइए जानते हैं।
- ब्लूटूथ से डाटा ट्रांसफर करने की दूरी कम है।
- यह टेक्नोलॉजी कम सुरक्षित है। हालांकि इसमें सुधार किए जा रहे हैं।
- WiFi टेक्नोलॉजी के मुकाबले ब्लूटूथ की Bandwidth बेहद कम है।
ब्लूटूथ से डाटा ट्रांसफर करने की दूरी कितनी है?
ब्लूटूथ से हम अपने डिवाइस से 10 मीटर की दूरी तक डाटा ट्रांसफर कर सकते हैं।
सबसे तेज ब्लूटूथ वर्जन कौन सा है?
ब्लूटूथ 5.0 वर्जन अपनी long-range और एक साथ दो डिवाइस को कनेक्ट करने की क्षमता के साथ सबसे तेज ब्लूटूथ वर्जन है।
विश्व का सबसे पहला ब्लूटूथ मोबाइल फोन कौन सा था?
ericsson T36 विश्व का सबसे पहला ब्लूटूथ मोबाइल फोन था। जिसे वर्ष 2001 में लॉन्च किया गया था।
सर्वप्रथम ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी को किसने बनाया?
सर्वप्रथम Ericsson कंपनी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर Dr. Jaap Haartsen ने bluetooth Wireless Technology को बनाया।
निष्कर्ष-
अंत में दोस्तों अब आप bluetooth के बारे में पूरी जानकारी जान चुके हैं। आपने नए ब्लूटूथ डिवाइस खरीदे होंगे। वह चाहे कोई Bluetooth Earphone, Headset, Speaker हो। आपने उनके कई ख़ास फ़ीचर्स को नोटिस किया होगा। जैसे कि अब काफी दूर तक मोबाइल वायरलेस हेडफोन से ले जाने पर कनेक्शन नहीं टूटता। तो ऐसा क्यों?
दरअसल ऐसा इसलिए है। क्योंकि नई डिवाइस में ब्लूटूथ के Latest Version कंपनी उपलब्ध कराती है। जिससे लोगों को उनके प्रोडक्ट पसंद आए। इसलिए हमेशा उस डिवाइस को ही खरीदें। जिसमें ब्लूटूथ के Latest Version हो जैसे v5.0, v5.1, v5.2, v5.3 इत्यादि
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